लखनऊ में इमामबाड़ा परिसर में बड़ा इमामबाड़ा स्थित है | इसे 1784 ई॰ में नवाब आसिफ़-उद-दौला द्वारा बनवाया गया था | इसे आसफ़ी इमामबाड़ा भी कहा जाता है |
बड़े का अर्थ अंग्रेज़ी में “बिग” है, तथा इमामबाड़ा एक दरगाह है जिसे शिया मुस्लिमों द्वारा “अज़ादारी” प्रयोजन से बनवाया गया था | बड़ा इमामबाड़ा लखनऊ के विशालतम भवनों में से है |
परिसर में बड़ी आसफ़ी मस्जिद, भूल-भुलैया तथा एक बावली (जल प्रवाह सहित भूमिगत कुआं) भी स्थित है | भवन के मुख्य हाल में प्रवेश हेतु दो भव्य द्वार हैं |
बड़ा इमामबाड़ा का निर्माण 1785 ई॰ में प्रारम्भ हुआ, वह विनाशकारी अकाल का वर्ष था तथा इस विशाल व सुंदर परियोजना के पीछे नवाब आसफ-उद-दौला का लक्ष्य यह था कि लगभग एक दशक तक रहे भयानक अकाल के समय में लोगों को आजीविका प्रदान की जा सके | यह कहा जाता है कि सामान्य जन ने इस प्रासाद के निर्माण में भाग लिया जो दिन में काम करते थे तथा विशिष्ट व्यक्ति व अभिजात वर्ग के लोग दिन भर में किए गए कार्य को रात में गिराने का काम करते थे |
यह परियोजना ऐसी थी जिसने रोजगार सृजित करने हेतु जेएम कींस के सिद्धान्त जैसा हस्तक्षेप प्रतिपादित किया | इमामबाड़ा का निर्माण 1791 में पूर्ण हुआ | इस भवन की निर्माण लागत 50,000 से 1.0 लाख के बीच अनुमानित है | यहाँ तक कि निर्माण पूरा हो जाने के बाद भी नवाब ने इसकी साज सज्जा पर वार्षिक चार से पाँच हज़ार रुपए व्यय किए | .
बड़ा इमामबाड़ा के निर्माण की विशिष्ट शैली है | इसका केन्द्रीय हॉल विश्व का विशालतम महराबदार हॉल माना जाता है | हॉल 50 मीटर लंबा तथा 15 मीटर तक ऊंचा है | इसके निर्माण को विशिष्ट बनाने वाला तथ्य है कि इसके खंड ईंटों को इंटर्लोकिंग पद्धति में रख कर निर्मित किए गए हैं तथा इसमे इसी भी प्रकार के गर्डर अथवा बीम का प्रयोग नहीं हुआ है | छतें आज तक बिना किसी स्तम्भ के सहारे के टिकी हैं |
प्रवेश शुल्क
भारतीयों हेतु रू॰ 25/- प्रति व्यक्ति तथा विदेशी पर्यटकों हेतु रू॰ 300 प्रति व्यक्ति
समय
सोमवार के अतिरिक्त सभी दिवसों में 6:00 बजे पूर्वाह्न से लेकर 6:00 बजे अपराहन तक