गोवर्धन पहाड़ी

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  • गोवर्धन पर्वत का इतिहास
गोवर्धन पहाड़ी

गोवर्धन पहाड़ी उत्तर प्रदेश के मथुरा जनपद में वृन्दावन नगर के निकट स्थित है | यह हिन्दू धर्म में, विशेषकर वैष्णव परंपरा में, पवित्र माना जाता है | इसे गोवर्धन या गिरिराज के नाम से भी जाना जाता है, ये ब्रज का पवित्र केंद्र है तथा भगवान कृष्ण के प्राकट्य के स्थान के रूप में चिन्हित किया गया है |


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“गोवर्धन” शब्द के दो प्राथमिक अनुवाद हैं | शाब्दिक अर्थ के अनुसार “गो” का अर्थ गाय से तथा “वर्धन” का अर्थ पोषण से है | अन्य अर्थों में “गो” का अर्थ “बुद्धि” से है तथा “वर्धन” का अर्थ “बढ़ाने” से है | अत: कृष्ण भक्तों द्वारा इस स्थल को कृष्ण आकर्षण में “बुद्धि विस्तारक” के रूप में भी अनुवादित किया जाता है | इस संबंध में, ऐसा विश्वास किया जाता है कि गोवर्धन का अस्तित्त्व श्रद्धालु की श्रद्धा में वृद्धि करता है | इस प्रकार, गोवर्धन पहाड़ी के चरणों में रहने से सभी इंद्रियाँ व आत्मा दिव्यत्त्व को प्राप्त करती है तथा कृष्ण की आराधना करने की ओर अधिक उन्मुख होती है |  

गोवर्धन पूजा दीपावली के एक दिन पश्चात की जाती है | यही वह दिन था जब भगवान कृष्ण ने इंद्र को पराजित किया था, जो तूफ़ान और वर्षा के देवता हैं | कथानुसार, कृष्ण ने देवराज इंद्र के वार्षिक चढ़ावे हेतु हो रही व्यापक तैयारियों को देखा तथा अपने पिता नन्द से इसके विषय में पूछा | उन्होने ग्रामवासियों से पूछा कि वास्तव में उनका “धर्म” क्या है  | वे कृषक हैं और उन्हें अपनी खेती तथा पशुओं की रक्षा पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए |  उन्होंने आगे कहा कि सभी मनुष्यों को अपनी क्षमता के अनुसार केवल अपने “धर्म” का ही पालन करना चाहिए, तथा प्राकृतिक घटनाओं  के लिए प्रार्थना और न ही बलिदान देना चाहिए | ग्रामवासी कृष्ण के  मतों से सहमत हुए तथा उन्होने विशेष पूजा नहीं की | इस पर इंद्र रूष्ट हो गए तथा गाँव में बाढ़ भेज दी | कृष्ण ने तब गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और अपने लोगों व मवेशियों की वर्षा से रक्षा की | इंद्र ने अंततः अपनी पराजय स्वीकार कर ली व कृष्ण को सर्वोपरि मान लिया |