झांसी नगर पहुज तथा बेतवा नदियों के मध्य स्थित है तथा ये वीरता, साहस व आत्म सम्मान का प्रतीक है | यह कहा जाता है कि प्राचीन काल में झांसी छेदी राष्ट्र, जेजक भूकित, जझोति तथा बुंदेलखंड क्षेत्रों का भाग था |
झांसी चंदेल राजाओं का गढ़ था |इसका पूर्व नाम बलवंत नगर था | परंतु 11वीं शताब्दी में झांसी ने अपना महत्त्व खो दिया | 17वीं शताब्दी में ओरछा के राजा बीर सिंह देव के शासनकाल में झांसी ने अपनी खोई हुई महत्ता को पुनः प्राप्त किया | राजा बीर सिंह देव के मुग़ल बादशाह जहाँगीर के साथ अच्छे संबंध थे | 1613 ई॰ में राजा बीर सिंह देव ने झांसी के क़िले का निर्माण करवाया |उनका 1627 ई॰ में निधन हो गया | उन की मृत्यु के बाद उनके पुत्र जौहर सिंह ने शासन सम्हाला |
पन्ना के महाराजा छत्रसाल बुंदेला एक अच्छे प्रशासक व बहादुर योद्धा थे | 1729 में मोहम्मद ख़ान बंगाश ने छत्रसाल पर आक्रमण कर दिया | पेशवा बाजीराव (प्रथम) ने महाराजा छत्रसाल की सहायता की तथा मुग़ल सेना को हरा दिया | सम्मान व्यक्त करने के निमित्त महाराजा छत्रसाल ने अपने राज्य का एक भाग मराठा पेशवा बाजी राव (प्रथम) को दे दिया | इसी भाग में झांसी भी सम्मिलित था |
1742 में नरोशंकर को झांसी का सूबेदार बनाया गया | अपने 15 वर्ष के कार्यकाल में उसे न केवल रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण झांसी के क़िले का विस्तार किया बल्कि कुछ अन्य भवनों का भी निर्माण किया | क़िले का बढ़ाया हुआ भाग शंकरगढ़ के नाम से जाना जाता है | 1757 में नरोशंकर को पेशवा ने वापस बुला लिया | उनके बाद माधव गोविंद काकिर्दे तथा तत्पश्चात बाबूलाल कनहाई को झांसी का सूबेदार नियुक्त किया गया |
1766 में विश्वास राव लक्ष्मण को झांसी का सूबेदार बनाया गया | उनका कार्यकाल 1766 से 1769 तक रहा | उनके बाद रघुनाथ राव (द्वितीय) नवलकर को झांसी का सूबेदार नियुक्त किया गया | वह एक अति कुशल प्रशासक थे |उन्होने राज्य की आय में वृद्धि की | उनके द्वारा महालक्ष्मी मंदिर व रघुनाथ मदिर का निर्माण किया गया |अपने निवास के लिए उन्होंने नगर में एक अति सुंदर भवन ‘रानी महल’ का निर्माण कराया | 1796 में रघुनाथ राव ने अपने भाई शिव राव हरि को सूबेदारी सौंप दी |
1803 में ईस्ट इंडिया कंपनी व मराठाओं के मध्य एक संधि हुई |
शिव राव की मृत्यु के पश्चात उनके पौत्र रामचन्द्र राव ने झांसी की सूबेदारी सम्हाली, दुर्भाग्य से वह कुशल प्रशासक नहीं थे | 1836 में रामचन्द्र राव की मृत्यु हो गई | उनकी मृत्यु के पश्चात रघुनाथ राव (तृतीय) झांसी के सूबेदार बने | 1838 में उन की भी मृत्यु हो गई |तब ब्रिटिश शासकों ने गंगाधार राव को झांसी के शासक के तौर पर स्वीकार कर लिया |रघुनाथ राव (तृतीय) के शासन काल में प्रशासन के अभाव के कारण राज्य की वित्तीय स्थिति बहुत संकटग्रस्त हो गई थी |
राजा गंगाधर राव बहुत कुशल प्रशासक थे | वह बहुत उदार व दयालु थे | उन्होने झांसी को बेहतरीन प्रशासन दिया | उनके कार्यकाल में झांसी की स्थानीय प्रजा बहुत संतुष्ट रहती थी |
1842 में राजा गंगाधर राव ने मणिकर्णिका से विवाह किया | विवाहोपरान्त मणिकर्णिका को नया नाम दिया गया लक्ष्मी बाई, जिन्होंने 1857 में अंग्रेजों के विरुद्ध सैन्य नेतृत्व किया | उन्होने भारतीय स्वतन्त्रता के संग्राम 1858 में अपने जीवन का बलिदान दिया |
1861 में ब्रिटिश सरकार ने झांसी का क़िला व झांसी नगर जियाजी राव सिंधिया को दे दिया | झांसी तब ग्वालियर राज्य का एक भाग बन गया | परंतु 1866 में अंग्रेजों ने झांसी को ग्वालियर से वापस ले लिया |
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात, झांसी को उत्तर प्रदेश में सम्मिलित किया गया | वर्तमान में झांसी सम्भागीय आयुक्त का मुख्यालय है जिसमें झांसी ललितपुर व जालौन जनपद सम्मिलित हैं |
संदर्भ:-
- झांसी विवरणिका
- झांसी - डा॰ रुद्र पाण्डेय
- ज़िला विकास पत्रिका (1996-1997), झांसी
रानी लक्ष्मी बाई, ज्वाला के समान झांसी की प्रथम रानी जिन्हें झांसी की रानी भी कहा जाता है; भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की प्रथम राष्ट्रीय नायिका, भारत में अंग्रेजों के विरोध की प्रतीक लक्ष्मी बाई का जन्म 19 नवंबर 1835 को काशी में हुआ था | उनके पिता मोरोपंत एक ब्राह्मण तथा माता भागीरथी बाई एक सुसंस्कृत, बुद्धिमान तथा धार्मिक महिला थीं | रानी लक्ष्मी बाई के बचपन का नाम मणिकर्णिका था | जब वह मात्र चार वर्ष की थीं तभी उनकी माताश्री का निधन हो गया |
छोटी सी बालिका के लालन पालन का पूर्ण उत्तरदायितत्व उनके पिता पर आ गया |मणिकर्णिका ने अपनी शिक्षा के साथ साथ घुड़सवारी, तलवारबाज़ी तथा बंदूक चलाना भी सीखा |
उनका विवाह झांसी के महाराजा राजा गंगाधर राव के साथ 1842 ई॰ में हुआ तथा वह झांसी की रानी बन गयीं | विवाहोपरान्त उन्हें “लक्ष्मी बाई” नाम दिया गया |
झांसी स्थित गणेश मंदिर में विवाह समारोह सम्पन्न हुआ | रानी लक्ष्मी बाई ने 1851 ई॰ में एक पुत्र को जन्म दिया परंतु दुर्भाग्य से वह चार महीने तक ही जीवित रह सका | इस दुखद घटना के बाद, राजा गंगाधर राव ने एक पुत्र को गोद लिया | बाद में, 21 नवंबर 1853 को महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई |रानी बिलकुल अकेली पड़ गयीं, इस समय उनकी आयु मात्र अट्ठारह वर्ष थी |रानी लक्ष्मीबाई ने इस संकट में भी अपना साहस नहीं छोड़ा तथा सदैव अपने उत्तरदायितत्व को याद रखा |
उस समय लार्ड डलहौज़ी भारत का गवर्नर-जनरल था | हिन्दू परंपरा के अनुसार, दामोदर राव जो महाराजा गंगाधर राव व रानी लक्ष्मी बाई का दत्तक पुत्र था, उनका उत्तराधिकारी था परंतु ब्रिटिश शासकों ने दामोदर राव के विधिक उत्तराधिकारी होने के रानी के दावे को नहीं माना | लार्ड डलहौज़ी ने निर्णय लिया कि झांसी को ब्रिटिश राज में मिला लिया जाए क्योंकि महाराजा गंगाधर राव का कोई विधिक उत्तराधिकारी नहीं था | झांसी के इस दुर्भाग्य को अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य विस्तार हेतु प्रयोग किया |
मार्च 1854 में ब्रिटिश शासकों ने रानी के लिए रू॰ 60,000/- वार्षिक पेंशन घोषित की तथा क़िला छोड़ने का आदेश दिया | रानी बहुत की कारुणिक दशा में थीं परंतु यह ज्वालामुखी विस्फोट से पूर्व के सन्नाटे जैसा था |
झांसी की रानी ने निश्चित किया कि वे झांसी नहीं छोड़ेंगी | वे देशभक्ति तथा आत्म-सम्मान की प्रतीक थीं | अंग्रेज़ भारत की स्वतन्त्रता की हर आवाज़ को दबाने का प्रयत्न कर रहे थे जबकि रानी अंग्रेजों से छुटकारा पाने हेतु दृढ़ प्रतिज्ञ थीं |
रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी सेना को शक्ति दी तथा स्वयंसेवी विद्रोहियों की एक सेना तैयार की | महिलाओं को भी सैन्य प्रशिक्षण दिया गया | रानी ने अपने वीर योद्धाओं को साथ लिया जिनमें ग़ुलाम गौस ख़ान, दोस्त ख़ान, ख़ुदा बख़्श, लाला भाऊ बख़्शी, मोती बाई, सुंदर-मुंदर, काशी बाई, दीवान रघुनाथ सिंह तथा दीवान जवाहर सिंह सम्मिलित थे | इन सब योद्धाओं के साथ झांसी की स्थानीय जनता, स्वतन्त्रता व अपनी प्रिय रानी के कहने पर सहर्ष अपने प्राणों का बलिदान देने के लिए सदैव तैयार थी |.
अंग्रेजों ने मार्च 1858 में झांसी पर आक्रमण कर दिया | रानी ने अपने विश्वासपात्र योद्धाओं के साथ निश्चय किया कि वे समर्पण नहीं करेंगी |लगभग दो सप्ताह तक युद्ध चला | झांसी पर बहुत भयानक गोलाबारी हुई | रानी की सेना में महिलाएं सैनिकों को गोलाबारूद तथा भोजन की आपूर्ति कर रही थीं | रानी बहुत सक्रिय थीं वे युद्ध के दौरान स्वयं नगर की सुरक्षा की निगरानी कर रही थीं | हालांकि इस महायुद्ध के पश्चात झांसी पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया |
उस काले दिन, अंग्रेज़ी सेना झांसी नगर में प्रवेश कर गई | रानी लक्ष्मी बाई अभी भी साहस व बलिदानी देशभक्ति से ओतप्रोत थीं, उन्होने एक पुरुष का वेश धारण किया, हथियार उठाए, अपनी पीठ पर अपने पुत्र दामोदर को कस कर बांधा | वह घोड़े की लगाम दांतों में दबाए हुए थीं | उस भयंकर युद्ध में वह दोनों हाथों से तलवार चला रही थीं तथा जब स्थिति नियंत्रण में नहीं रही, तो रानी ने कुछ सैनिकों के साथ झांसी से कूच कर दिया |
रानी काल्पी पहुँचीं जहां अनेक विद्रोही उनसे जुड़े | तात्या टोपे उनमें से एक थे | काल्पी से रानी ने ग्वालियर की ओर कूच किया | मार्ग में पुनः भयंकर युद्ध हुआ | रानी बलिदानी वीरता के साथ लड़ीं | युद्ध के दूसरे दिन, भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की महान नायिका, 23 वर्ष की आयु में देश पर न्योछावर हो गयीं | वह अभागा दिन था 18 जून, 1858 |
वायु मार्ग द्वारा :
निकटवर्ती हवाई अड्डे ग्वालियर व खजुराहो हैं |
ग्वालियर - 103 किमी
खजुराहो - 175 किमी
रेलमार्ग द्वारा:
दिल्ली-मुंबई रेलमार्ग पर स्थित झांसी एक जंक्शन है | यह उत्कृष्ट रेल नेटवर्क द्वारा जुड़ा है | इस मार्ग की कुछ मुख्य ट्रेनें इस प्रकार हैं :Shatbadi Exशताब्दी एक्स्प्रेस, पंजाब मेल, दादर-अमृतसर एक्स्प्रेस, झेलम एक्स्प्रेस, कर्नाटका एक्स्प्रेस, महाकौशल एक्स्प्रेस, मालवा एक्स्प्रेस, कुशीनगर एक्सप्रेस, तमिलनाडु एक्स्प्रेस, जी॰टी॰ एक्स्प्रेस, मंगला एक्स्प्रेस व केरला एक्स्प्रेस|
सड़क मार्ग द्वारा :
झांसी सड़क मार्ग के बेहतरीन नेटवर्क द्वारा भली प्रकार जुड़ा है | यह राष्ट्रीय उच्च मार्ग संख्या 25 व 26 पर स्थित है | यहाँ से कुछ प्रमुख नगरों की दूरी इस प्रकार है :
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ओरछा (मध्य प्रदेश) |
20 कि.मी. |
दतिया (मध्य प्रदेश) |
28 कि.मी. |
ललितपुर |
93 कि.मी. |
शिवपुरी (मध्य प्रदेश) |
100 कि.मी. |
ग्वालियर (मध्य प्रदेश) |
103 कि.मी. |
काल्पी |
142 कि.मी. |
खजुराहो (मध्य प्रदेश) |
176 कि.मी. |
कानपुर |
220 कि.मी. |
आगरा |
221 कि.मी. |
लखनऊ |
297 कि.मी. |
दिल्ली |
416 कि.मी. |
गोरखपुर |
563 कि.मी. |
स्थानीय परिवहन हेतु टैक्सियाँ,आटो रिक्शा तथा टूरिस्ट कैब उपलब्ध हैं |