वर्तमान कौशांबी जनपद 4 अप्रैल, 1997 को तत्कालीन प्रयागराज जनपद को काट कर बनाया गया था | जनपद का मुख्यालय मंझनपुर, प्रयागराज के दक्षिण-पश्चिम में यमुना के उत्तरी किनारे पर लगभग 55 किमी की दूरी पर स्थित है |
यह चित्रकूट, प्रतापगढ़, प्रयागराज व फ़तेहपुर जनपदों से घिरा है |
कौशांबी का बहुत ही गौरवमयी इतिहास है | प्राचीन भारत में, कौशांबी चेदी-वत्स जनपद की राजधानी था, यह प्रमुख जनपदों में से एक था जहां भारतीय-आर्य लोग विभाजित थे | इनमें से कुछ जनपद, उपनिषदों में वर्णित के अनुसार, प्रमुखता से ब्राह्मण बहुल थे, परंतु यह इस ओर इंगित नहीं करता कि कौशांबी की प्राचीनता ब्राह्मणों के समय से ही है |“शतपथ ब्राह्मण” में कौशांबी निवासी एक व्यक्ति जिसका नाम प्रोती कौशांबेय था, का वर्णन मिलता है |इस नगर की पुरातनता महाभारत व रामायण से भी सिद्ध होती है , प्राचीन वर्णन में इस नगर का कुसाम्बा नाम से शिलान्यास किए जाने का उल्लेख मिलता है, कुसांबा जो चेदी राजा उपरिचर वासु का तीसरा पुत्र था, बाद में इसका नाम कुस के पुत्र के नाम पर कौसांबा हो गया|
परामत्थ ज्योतिका के अनुसार, कौशांबी ऋषि कोसांबा का आश्रम था कालांतर में इसे इस वर्तमान नाम से जाना गया |बुद्धघोष में उल्लेख है कि नगर की स्थापना के कुछ समय बाद यहाँ बड़ी संख्या में कुसंबा पेड़ों को काटा गया|यधपि मात्र थोड़े से परिवर्तन के साथ ही सही,बुद्धघोष में वर्णित परंपरा जैन ग्रन्थों में भी मिलती है| जैन ग्रंथ विविध-तीर्थ-कल्प के अनुसार कुसाम्बा वृक्षों से घिरा होने के कारण ही इसे कौशांबी कहा गया |
पुराणों के अनुसार निकाक्षु, जो परीक्षित की पीढ़ी का छठवाँ शासक था, ने अपनी राजधानी हस्तिनापुर से कौशांबी स्थानांतरित की थी क्योंकि हस्तिनापुर बाढ़, टिड्डी दलों के आक्रमण तथा स्वयं कुरू परिवार की आंतरिक उथल पुथल के कारण विनष्ट हो गया था |
जनपद कौशांबी प्रयागराज, प्रतापगढ़, चित्रकूट तथा फ़तेहपुर जनपदों से घिरा है | जनपद का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 2012.8 वर्ग किमी है |
प्रशासनिक प्रभाग
जनपद 3 तहसीलों मंझनपुर, सिराथू व चायल में विभाजित है |तहसीलें विकासखंडों में विभाजित हैं |मंझनपुर तहसील के अन्तर्गत सरसावां, मंझनपुर तथा कौशांबी विकास खंड हैं |सिराथू तहसील के अन्तर्गत कड़ा व सिराथू विकास खंड हैं तथा चायल तहसील में चायल, मूरतगंज व नेवादा विकासखंड आते हैं |
नदियां
गंगा व यमुना इस नगर की प्रमुख नदियां हैं | नगर का मैदानी क्षेत्र गंगा व यमुना नदियों के बीच स्थित है अतः ये नदियां जनपद की कृषि में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं |
तापमान तथा वर्षा
जनपद का वातावरण शीतोष्ण है अर्थात गर्मियों में बहुत अधिक गर्म व सर्दियों में बहुत ठंडा | परंतु वर्षा ऋतु में मौसम अच्छा व सुहावना हो जाता है |
फसलें
कौशांबी मुख्यता एक कृषि प्रधान जनपद है,गेहूं और चावल यहाँ की प्रमुख फसलें हैं | कुछ क्षेत्रों में दालें यथा अरहर, उरद तथा चने की कृषि भी की जाती है | प्रयागराज का विशिष्ट अमरूद वास्तव में कौशांबी का ही है | यहाँ सिंचाई के मुख्य स्रोत नहरें तथा नलकूप हैं |
जनपद कौशांबी ऐतिहासिक स्थानों से समृद्ध है | सर्वकालिक इतिहास इस जनपद के महत्त्वपूर्ण होने के रहस्य से पर्दा उठाता है |जनपद में मंदिरों की बहुलता है जिनमें कारा धाम का शीतला मंदिर तथा प्रभोसा का जैन मंदिर प्रमुख आकर्षण हैं |
कारा की ऐतिहासिक व धार्मिक महत्ता बहुत पुरानी है | यह क्षेत्र प्रयागराज के उत्तर पश्चिम में लगभग 69 किमी की दूरी पर स्थित है | कारा में बहुत से मंदिर हैं जिनमें शीतला माता मंदिर, छत्रपाल भैरव मंदिर, हनुमान मंदिर तथा कालेश्वर महादेव मंदिर प्रसिद्ध हैं |
शीतला माता का मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित है | यह देवियों के सभी 51 शक्ति पीठों में प्रमुख माना जाता है | मूर्ति में शीतला माता एक गर्दभ पर विराजमान हैं | सभी धर्मों के अनुयायी इस मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं |ऐसी मान्यता है कि चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को इस मंदिर में पूजा करने से श्रद्धालु बुरी शक्तियों से छुटकारा प्राप्त करते हैं |
यह क्षेत्र लगभग 1000 ई॰ से ही तीर्थ स्थान के रूप में जाना जाता है | मध्यकालीन राजाओं के राज्य में उत्तर भारत में कारा एक महत्त्वपूर्ण कस्बा था तथा आज भी कन्नौज के अंतिम हिन्दू शासक राजा जयचंद के क़िले के अवशेष यहाँ देखे जा सकते हैं |
कारा प्रसिद्ध संत मलूकदास(1631-1739) की जन्म स्थली भी है | यहाँ संत का आश्रम व उनकी समाधि भी है | वह देवी कारा के अनुयायी भी थे | प्रसिद्ध सिख गुरु तेग बहादुर संत मलूकदास के साथ विभिन्न विषयों पर चर्चा हेतु कारा आ चुके हैं |
प्रभासगिरि अथवा प्रभोसा यमुना नदी के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक व ऐतिहासिक स्थल है जो प्रयागराज के उत्तर में लगभग 50 किमी दूर मंझनपुर तहसील में स्थित है |
यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण इस स्थान पर जरत कुमार द्वारा हिरण के धोखे में चलाए गए तीर से मृत्यु को प्राप्त हुए थे |
प्राचीन काल में, एक बड़ी पहाड़ी पर एक विशाल जैन मंदिर स्थित था | इस मंदिर के ध्वस्तीकरण के बाद, 1824 ई॰ में दूसरे जैन मंदिर का निर्माण किया गया | यहाँ एक 9 फुट लंबी व 7 फुट चौड़ी गुफ़ा भी मौजूद है | इस गुफ़ा में गुप्त वंश से पूर्व के दूसरी शताब्दी के शिलालेख ब्राह्मी लिपि में मिलते हैं | आज तक यह स्थान जैन धर्म के सभी मतावलंबियों की आस्था का केंद्र है | यही वह स्थान है जहां जैन धर्म के छठे तीर्थांकर भगवान पद्म प्रभु ने अपने जीवन का अधिकांश समय व्यतीत किया |
अपनी प्रसिद्ध रिपोर्ट में सर ल्यूनर्ड वूली ने कौशांबी को गंगा घाटी के दो महत्त्व पूर्ण स्थानों में से एक बताया हैजो, उनके अनुसार, खुदाई किए जाने पर प्राचीन भारतीय इतिहास को उजागर करेगा | यह भारतीय पुरातत्त्व के इतिहास में एक स्वर्णिम क्षण था जब 01 मार्च, 1948 को सर मोर्टिमर ने प्रयागराज विश्वविद्यालय को कौशांबी की खुदाई हेतु अधिकृत किया व जी॰आर॰ शर्मा को इसका निदेशक नियुक्त किया |
निम्नलिखित क्षेत्रों में खुदाई का कार्य किया गया – अशोक स्तम्भ के पास जो नगर के आवसीय क्षेत्र के निकट ही था; घोसीत्तर्मा मठ के पास, पूर्वी द्वार के निकट स्थित मोर्चों के पास,उत्तरी पूर्वी कोने के पास स्थित मीनार के पास, पत्थर की गढ़ी (महल) के पास |
यह मंदिर मंझनपुर के 10 किमी पश्चिम में स्थित ग्राम गंभीरापुरब में एक तालाब के किनारे स्थित है | स्थानीय परंपरा के अनुसार, कामासिन देवी अपने भक्तों की हर इच्छा पूरी करती हैं | स्थानीय लोगों की इस मंदिर की दिव्य शक्तियों में अगाध आस्था है |
यह स्थान प्रयागराज से 30 किमी दूर प्रयागराज-कानपुर मार्ग पर स्थित है | यह स्थान चायल तहसील के क्षेत्र में आता है | यहाँ भगवान राम का एक विशाल मंदिर स्थित है जिसे 20 वर्ष पहले निर्मित किया गया था |
कौशांबी के निकट बहुत से दर्शनीय स्थल हैं यथा प्रयागराज, कानपुर, वाराणसी, चित्रकूट तथा विंध्याचल |
प्रयागराज व कानपुर से कौशांबी हेतु रेल मार्ग होने के अतिरिक्त जनपद के अन्य रेलवे स्टेशन सिराथू व भरवारी भी रेल आवागमन की सुविधा प्रदान करते हैं |