रेज़ीडेंसी को ब्रिटिश रेज़ीडेंसी तथा रेज़ीडेंसी कॉम्प्लेक्स भी कहा जाता है | यह एक ही परिसर में बहुत से भवनों का एक समूह है | रेज़ीडेंसी के मात्र अवशेष ही अब उपलब्ध हैं तथा यह नगर के मध्य में अन्य स्मारकों यथा शहीद स्मारक, टेढ़ी कोठी तथा उच्च न्यायालय भवन के समीप ही स्थित है | इसका निर्माण नवाब सआदत अली खान – द्वितीय के शासनकाल में हुआ था जो अवध (ब्रिटिश काल में “औध”) राज्य के पांचवें नवाब थे | निर्माण कार्य 1780 से 1800 ई॰ के मध्य हुआ तथा यह ब्रिटिश रेज़ीडेंट जनरल के निवास के रूप में प्रयोग किया गया जो नवाब के दरबार में ब्रिटिश प्रतिनिधि थे | 1857 में यहाँ पर एक लंबा युद्ध हुआ जो लखनऊ की घेराबंदी के नाम से भी जाना जाता है | यह 1 जुलाई से प्रारम्भ हो कर 17 नवंबर तक चला |
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रेज़ीडेंसी को उसी स्थिति में अनुरक्षित किया गया है जिसमें वह अंतिम रूप से छोड़े जाते समय थी, टूटी दीवारों पर अभी भी तोप के गोलों के निशान मौजूद हैं | भारतीय स्वतन्त्रता के पश्चात, इसमें थोड़ा सा परिवर्तन आया है | भवन के अवशेष के चारों ओर हरे भरे लॉन व फुलवारियाँ इस स्थान को पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बनाती हैं | कब्रिस्तान जो एक निकटवर्ती चर्च के पास बना है वहाँ 2000 पुरुषों, महिलाओं व बच्चों की कब्रें हैं, इनमें सर हेनरी लौरेंस भी शामिल हैं जो लखनऊ की घेराबंदी में मारे गए थे | यहाँ सर हेनरी लौरेंस की कब्र के पास मौसम से विनष्ट हुआ एक समाधि-लेख भी है जिस पर लिखा है। “यहाँ साम्राज्य का एक बेटा सोता है जिसने अपने कर्तव्य निर्वहन का प्रयास किया” | पास की ही एक अन्य कब्र पर लिखा है “ मेरे बच्चो, रो मत, मैं मरा नहीं हूँ, बस यहाँ सो रहा हूँ ” | यहाँ हर शाम रेज़ीडेंसी का इतिहास प्रदर्शित करता हुआ ध्वनि व प्रकाश कार्यक्रम आयोजित किया जाता है |
प्रवेश शुल्क
रू॰ 5 प्रति व्यक्ति (भारतीय पर्यटकों से) तथा रू॰ 100 प्रति व्यक्ति (विदेशी पर्यटकों से)
समय
सप्ताह के सभी दिन 10:00 बजे पूर्वाह्न से लेकर 5:00 बजे अपराहन तक खुलता है |