सारनाथ बौद्ध धर्म के अनुयायियों हेतु एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है | यह सारंगनाथ, मृगादवा, मिगादया, ऋषिपट्टन अथवा इसिपाटन के नाम से भी जाना जाता है | यह वह स्थान है जहां भगवान बुद्ध ने बोध प्राप्त करने के पश्चात प्रथम प्रवचन दिया |
यह वाराणसी से 13 किमी उत्तर-पूर्व में स्थित है, सारनाथ बहुत से बौद्ध मंदिरों का गृह है जो विभिन्न बौद्ध मतों व देशों से संबन्धित है |सारनाथ का मुख्य बौद्ध मंदिर मूलगन्ध कुटी विहार मंदिर है | बोध प्राप्त करने के उपरांत, बुद्ध ने अपने मित्रों को शिक्षा देने के निमित्त इसिपाटन की यात्रा की थी व उन्हें धर्म को समझाने में सफल हुए | उनके मित्रों को भी बोध प्राप्त हुआ | यह वह समय था जब संघ (बोध प्राप्त लोगों का सुमदाय) अपने अस्तित्त्व में आया |
बहुत से बौद्ध मंदिरों के अतिरिक्त वहाँ अनेकों बौद्ध स्थल हैं यथा धामेक स्तूप, चौखंडी स्तूप, खड़े हुए बुद्ध की 80 फुट ऊंची प्रतिमा तथा अन्य प्राचीन स्थल यथा वह अवशेष जहां अशोक स्तम्भ के ऊपर लायन कैपिटल को खोजा गया था, भी सारनाथ में मौजूद है |भारत का राज-चिन्ह सारनाथ में मौजूद अशोक स्तम्भ के लॉयन कैपिटल से लिया गया है |
सारनाथ अथवा सारंगनाथ (जिसे मृगादवा, मिगादया, ऋषिपट्टन तथा इसिपाटन भी कहा जाता है) भारत में बौद्ध तीर्थ स्थलों का केंद्र है | यह जैन धर्म के अनुयायियों हेतु भी एक महत्त्वपूर्ण स्थान है |
सारनाथ उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर के 13 किमी उत्तर पूर्व में स्थित है | यही वह स्थान है जहां गौतम बुद्ध ने बोध-गया (अब बिहार में) से बोध प्राप्त करने के उपरांत अपने पाँच शिष्यों कौण्डिन्य,बशप,भद्रिका, महानमन तथा अश्वजित को प्रथम उपदेश दिया था |
इस प्रकार सारनाथ वह स्थान है, जहां संघ अर्थात संतों व धम्म हेतु एक नई परंपरा की स्थापना हुई| यह जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी एक धार्मिक व पवित्र स्थान है | यह 11वें तीर्थंकर श्रेयम्श्नाथ की जन्मस्थली भी है |
प्राचीन बौद्ध साहित्य में सारनाथ को ऋषिपाटन तथा मृगाद्वा या मृगादया कहा जाता था | इसके पीछे यह तर्क है कि निर्वाण प्राप्त करने के पश्चात यहाँ पर अनेकों “प्रात्येक बुद्ध” अथवा “ऋषि” समाधिस्थ हुए थे |
इस क्षेत्र को “मृगाद्वा” कहे जाने का संदर्भ बुद्ध जातक में उल्लिखित हिरण अभयारण्य से जोड़ा जाता है | जातक के अनुसार, बुद्ध अपने पूर्व जन्म में हिरणों के एक झुंड के प्रमुख थे तथा उन्होने इस रूप में एक व्यक्ति की प्राण रक्षा की थी तथा बनारस के राजा के समक्ष प्रस्तुत हुए थे तथा स्वयं को उस व्यक्ति के स्थान पर मार दिये जाने का आग्रह किया था जो अपने शिकार पर निरंतर दृष्टि गड़ाए हुए था | राजा, बुद्ध के बलिदानी उत्साह से अति प्रभावित हुआ व उन्हें घूमने हेतु स्वतंत्र छोड़ दिया |
यह स्थान धर्मचक्र अथवा साधम्च्क्र प्रवर्तन विहार भी कहलाता था, जैसा कि सारनाथ में पाए गए पूर्व मध्यकाल के शिलालेखों से पता चलता है | वर्तमान नाम सारनाथ, सारंगनाथ का ही एक छोटा रूप है जिसका अर्थ है हिरणों का स्वामी |
दर्शनीय स्थान
चौखंडी स्तूप
चौखंडी स्तूप वाराणसी से 13 किमी की दूरी पर स्थित है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह गुप्त काल में चौथी से छठी शताब्दी के मध्य छतदार मंदिर था | चौखंडी स्तूप ईंटों की बनी एक अवसंरचना है जिस पर एक अष्टकोणीय मीनार है | प्रसिद्ध चीनी यात्री हवेन्त्सांग के अनुसार, उस समय यह क्षेत्र का सबसे ऊंचा स्तूप था | इस स्तूप पर अष्टकोणीय मीनार मुग़ल सम्राट अकबर के काल में सन 1588 ई॰ में जोड़ी गई, यह मीनार हुमायूँ को सारनाथ में मिली जागीर की याद में बनवाई गई थी |
धर्मराजिका स्तूप
सारनाथ की अन्य सार्थक संरचनाओं में धर्मराजिका स्तूप के अवशेष सार्थक हैं, यह धामेक स्तूप से थोड़ी ही दूर पर स्थित है | पुरातत्वशास्त्रियों के अनुसार धर्मराजिका स्तूप में भगवान बुद्ध की अस्थियाँ सुरक्षित हैं |
मूलगन्धकुटी विहार मंदिर:-
मूलगन्ध कुटी विहार मंदिर,जो सारनाथ के अनेकों मंदिरों में सर्वाधिक ख्यात है, की स्थापना श्रीलंका के महाबोधि समाज द्वारा की गई थी |यह मंदिर 1931 में निर्मित किया गया था तथा यहाँ तक्षशिला में पाये गए भगवान बुद्ध के पुरावशेष संरक्षित हैं | प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा पर ये अवशेष प्रदर्शित किए जाते हैं | यहाँ की दीवारों पर बुद्ध के जीवन को दर्शाते हुए सुंदर भित्तिचित्र हैं | ये भित्ति चित्र 1932-1935 के मध्य जापानी कलाकार कोसेतू नासू द्वारा बनाए गए थे |
सारनाथ पुरातत्वीय संग्रहालय
सारनाथ के पुरातत्वीय संग्रहालय में बौद्ध कला की अनेकों कलाकृतियाँ, चित्र व इस क्षेत्र की खुदाई में प्राप्त हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तिया संग्रहीत की गई हैं | संग्रहालय में पाँच दीर्घाएँ तथा दो बरामदे हैं | संग्रहालय की कुछ प्रमुख कलाकृतियों में बोधिसत्व का खड़ी मुद्रा में चित्र, एक नामिका जिसमें शिव अंधकासुर का वध करते दिखाई दे रहे हैं तथा सबसे महत्त्वपूर्ण “लायन कैपिटल” है | यद्यपि कुछ पर्यटकों के लिए यह दुखद है कि संग्रहालय के भीतर फ़ोटोग्राफ़ी की अनुमति नहीं है |
वायुमार्ग द्वारा
भारत के महत्त्वपूर्ण घरेलू हवाईअड्डेवाराणसी से सारनाथ पहुंचा जा सकता है |लगभग सभी निजी व सार्वजनिक हवाई सेवा प्रदाता नियमित रूप से वाराणसी को जोड़ने हेतु मुंबई, दिल्ली, खजुराहो व चेन्नई हेतु उड़ानें संचालित करते हैं | काठमाण्डू से भी वाराणसी पहुंचा जा सकता है |
सारनाथ से निकटतम हवाई अड्डा बाबतपुर (वाराणसी) में स्थित लाल बहादुर शास्त्री हवाई अड्डा है | सारनाथ इस हवाई अड्डे से मात्र 27 किमी दूर है |
रेलमार्ग द्वारा
सारनाथ/वाराणसी
सारनाथ को गोरखपुर व वाराणसी से जोड़ने हेतु एक छोटा रेलवे स्टेशन सारनाथ में स्थित है | वाराणसी जंक्शन मुख्य रेलवे स्टेशन है जो इस स्थान से मात्र 10 किमी की दूरी पर स्थित है |वाराणसी जंक्शन देश के मुख्य नगरों से रेलमार्ग द्वारा भली प्रकार जुड़ा हुआ है |
सड़क मार्ग द्वारा
वाराणसी, एक महत्त्वपूर्ण पर्यटक स्थल होने के कारण देश के अन्य नगरों से भली प्रकार जुड़ा है | बहुत सी सरकारी बसें सारनाथ को अन्य पड़ोसी नगरों से जोड़ती हैं |उत्तर प्रदेश के बहुत से नगर यथा प्रयागराज, मथुरा, आगरा, लखनऊ, कानपुर इत्यादि से वाराणसी हेतु निजी वातानुकूलित व गैर-वातानुकूलित डीलक्स बसे संचालित होती हैं |