वाराणसी

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वाराणसी

वाराणसी अथवा बनारस (काशी के नाम से भी जाना जाता है) विश्व के प्राचीनतम जीवित नगरों में से एक है |हिन्दू पौराणिक वर्णनों के अनुसार वाराणसी की प्रमुखता अद्वितीय है | अंग्रेज़ी लेखक मार्क ट्वेन, जो बनारस की शुचिता व प्रधानता के  दास हो गए थे, ने एक बार लिखा था, “ बनारस इतिहास से भी प्राचीन है, परम्पराओं से भी प्राचीन है, यहाँ तक कि किवदंतियों से भी प्राचीन है और यदि उन सबको मिला दिया जाए तो उससे भी दोगुना पुराना है” |वामन पुराण के अनुसार वरुणा व असी नदियां,जब स्वयं समय का प्रारम्भ हो रहा था तब आदिकालीन व्यक्ति के शरीर से निकलीं | विश्वास किया जाता है कि उन दोनों नदियों के बीच का भूभाग ही “वाराणसी” कहलाया, जो सभी तीर्थस्थानों में पवित्र है |

“काशी” शब्द की उत्पत्ति “कास” शब्द से हुई जिसका अर्थ “चमकने” से है |परंपरा व पौराणिक विरासत में सराबोर, काशी वह मूल धरती है जिसे शिव और पार्वती ने बसाया था, इस धरा पर वे समय के प्रारम्भिक काल में रहे | वाराणसी हिंदुत्त्व का सूक्ष्म दर्शन समाहित किए हुए है |यह एक ऐसा नगर है जो पारंपरिक संस्कृति, पौराणिकता से गौरवान्वित व धर्म से पवित्र है तथा जिसने पुरातनकाल से ही तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकृष्ट किया है |

वाराणसी में होना अपने आप में ही एक अनुभव और एक आत्म-खोज जैसा है अर्थात आत्मा व शरीर के एकाकार कर लेने का अनुभव प्राप्त कर लेने जैसा है |  प्रत्येक आगंतुक के लिए वाराणसी एक अविस्मरणीय अनुभव प्रस्तुत करता है | गंगा नदी के शांत जल पर सुबह की किरणों की अठखेलियाँ, ऊंचे ऊंचे किनारे,किनारों के साथ मंदिरों की कतारों का सुनहरी किरणों में नहा उठना, आत्मा तुष्ट करने वाली मंत्रों की ध्वनि व हवा में घुलती अगरबत्ती की मोहक सुगंध तथा तरोताज़ा कर देने पवित्र डुबकी के कारण घाट की सीढ़ियों पर होले हौले चढ़ती उतरती जल की धाराएँ नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत करती हैं |

वाराणसी वह धरा है जहां अनुभव तथा खोज अपने चरमोत्कर्ष को पहुँचती है |वाराणसी अपनी कला, शिल्प, संगीत व शिक्षा की समृद्ध चित्रयवनिका हेतु भी सम्मान से देखा जाता है | इन क्षेत्रों में भारत ने कुछ सम्मानित प्रतिपादक विश्व को दिये हैं वे वाराणसी के सांस्कृतिक संस्कारों में पले बढ़े हैं | दिग्गजों के अतिरिक्त वाराणसी सिल्क बुनाई,जो एक अनोखा कलात्मक कार्य है जिसकी उत्कृष्टता बनारसी सिल्क की साड़ियों तथा सिल्क के ज़री के वस्त्रों पर देखी जा सकती है जिसे आज दुनिया के हर कोने में संकलन योग्य वस्तु माना जाता है |

सारनाथ भारत में चार महत्त्वपूर्ण बौद्ध तीर्थ केन्द्रों में से एक है | महान ऋषि बुद्ध ने बोध गया में बोध प्राप्ति के बाद अपने पाँच शिष्यों (कौण्डिन्य, बश्पा, भद्रिका, महानमन तथा अश्वजीत) को मानवता के उद्धार हेतु सारनाथ में ही प्रथम प्रवचन दिया था । यही वह स्थान है जहां संतों हेतु एक नई परंपरा (संघ) व धर्म हेतु नया सिद्धान्त (धम्म) प्रतिपादित किया गया |

सारनाथ जैन धर्म के अनुयायियों के लिए भी पवित्र है क्योंकि इस वैराग्य की भूमि व 11वे तीर्थंकर श्रेयम्स्नाथ की अंतिम स्थली के रूप में देखते हैं | प्राचीन बौद्ध साहित्य में इस स्थान का उल्लेख ऋषिपत्तन/मृगादया अथवा मृगाद्वा नाम से मिलता है | इस स्थान के ऋषिपत्तन कहलाने के पीछे कारण ये है क्योकि यहाँ पर 500 से अधिक प्रात्येक बुद्ध अथवा ऋषि निर्वाण प्राप्ति के बाद दफ़नाए गए थे |  जातक के अनुसार,किसी जन्म में, बुद्ध हिरणों के झुंड के प्रमुख थे, एक बार एक शिकारी को बचाने के लिए वे बनारस के राजा के सम्मुख खड़े हो गए थे जो कि प्रतिदिन एक हिरण का मांस खाता था |

बनारस भारत की सांस्कृतिक राजधानी भी कहा जाता है तथा ये हिंदुओं के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है |

पुरातत्व, पौराणिकता, भूगोल, बनारस का इतिहास, गंगा के किनारे विशिष्ट बसावट तथा भारत के इतिहास के हृदय से गुजरती हुई इसकी विकास यात्रा इसे एक प्राचीनतम नगर बनाती है जो वर्तमान में भी आबाद है |

बनारस की कला , शिल्प तथा वास्तुकला

आपको यह जान कर प्रसन्नता होगी कि वाराणसी वास्तुकलात्मक डिज़ाइनों का संग्रहालय है |इतिहास के बदलते दौर में इस नगर ने सीखा है और यह बदलते हुए तौर तरीक़ों का सही प्रस्तुतीकरण करता है | इस नगर के पास समृद्ध लोक कला की ही भांति चित्रों मूर्तियों की शैली की भी मूलभूत तथा समृद्ध विरासत है | समय समय पर वाराणसी ने उच्चकोटि के शिल्पकारों को जन्म दिया है तथा अपनी प्रख्यात साड़ियों, हस्तशिल्प, कपड़ों, खिलौनों, आभूषणों, धात्विक कार्यों, मिट्टी व काष्ठ कला, पट्टियों व फाइबर के शिल्प हेतु यश व कीर्ति अर्जित की है |

गंगा की खोज

पवित्र नदियों में पवित्र नदी गंगा- अपनी पौराणिकता,सामाजिक–आर्थिक तथ्यों, स्मारकीय घाटों व उन से जुड़ी कथाओं के साथ समग्र रूप में सदियों से वाराणसी की जीवन रेखा रही है |

संगीत, नाटक व मनोरंजन का नगर

बनारस संगीत की दोनों ही प्रकार की विधाओं गायन तथा वादन के लिए प्रसिद्ध रहा है |इसके अतिरिक्त बनारस बहुत ही समृद्ध लोक संगीत तथा नाटक (विशेषकर रामलीला) हेतु प्रसिद्ध है, परंपरागत संगीतमय कथाएँ, पर्व व त्योहार, अखाड़ों की समृद्ध विरासत, खेल तथा बनारस की पुरानी पहचान याद दिलाती सवारी इक्का, ये सभी बनारस की सांस्कृतिक समृद्धता की कहानी कहती हैं |

औद्योगिक नगरी  :-

तेज़ी से विकसित होती भारी,हल्के व गृह उद्योगों की ये नगरी, स्थानीय शिल्पकला तथा अन्य लघु श्रेणी की औद्योगिक इकाइयां यथा डी एल डब्ल्यू, बी एच ई एल, इलेक्ट्रिक, साइकिल, पम्प्स, पेपर, काँच, उर्वरक इत्यादि का भी गृह है |

वाराणसी पुरातन प्लास्टिक सर्जरी कॉलेज, सुश्रुत, धन्वंतरि (औषधियों के भगवान) दिवोदास का गृह है तथा यहाँ सभी प्राचीन व आधुनिक औषधि पद्धतियाँ एक ही समय में प्रयोग में लायी जाती हैं |

बनारसी पान

पान के पत्ते, जो अनुरागी बनारसियों की आँखों में चमक पैदा कर देते हैं ,“मघई” कहलाते हैं जो कि बिहार में पैदा होते हैं |

मघई पान बहुत ही मुलायम होता है तथा मुंह में डालते ही घुल जाता है |

बनारसी साड़ी

बनारस भारत के समृद्ध शिल्प केन्द्रों में से एक है | यह अपनी ज़री की साड़ियों तथा सम्पूर्ण ड्रेस मैटीरियल के लिए प्रसिद्ध है |साड़ियों की विशेष क़िस्मों में जंगला, तंचोई, वास्कट, कटवर्क, टिशू, बूटीदार को सिल्क के कपड़े से बनाया जाता है, जिसका धरातल सादा/साटन का होता है, उसमें कपड़ों के कुछ अन्य डिजाइन ज़रदोज़ी के साथ लगाए जाते हैं जिसमें किनारों व आँचल पर शानदार आकर्षण हेतु बूटियों, घण्टियों, धरातल पर बूटों की कढ़ाई की जाती है |

भारत के इतिहास में बनारस का नाम ऋग्वेद में भी उल्लिखित है | रामायण व महाभारत का एक युग बनारस की साड़ी का उल्लेख करता है जो कि हिरण्य वस्त्र अथवा पीताम्बर वस्त्र के नाम से जाना जाता है |पुरातन काल में भी बनारस सूती साड़ी बुनने व ड्रेस मैटीरियल बनाने हेतु प्रसिद्ध था, परंतु शनै: शनै: यह सिल्क बुनाई के क्षेत्र में बदल गया |14वीं शताब्दी में मुग़ल काल में भी सोने व चांदी के तारों से ज़री की जटिल बुनाई बनारस की विशिष्टता थी |

ज़री वस्त्र

भारत के इतिहास में बनारस का नाम ऋग्वेद में भी उल्लिखित है | रामायण व महाभारत का एक युग बनारस की साड़ी का उल्लेख करता है जो कि हिरण्य वस्त्र अथवा पीताम्बर वस्त्र के नाम से जाना जाता है |पुरातन काल में भी बनारस सूती साड़ी बुनने व ड्रेस मैटीरियल बनाने हेतु प्रसिद्ध था, परंतु शनै: शनै: यह सिल्क बुनाई के क्षेत्र में बदल गया |

14वीं शताब्दी में मुग़ल काल में भी सोने व चांदी के तारों से ज़री की जटिल बुनाई बनारस की विशिष्टता थी |

काशी विश्वनाथ मंदिर

भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर जो इस नगर के प्रमुख आराध्य हैं, स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाता है | वाराणसी वह बिन्दु माना जाता है जहां प्रथम ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था,प्रकाश का वह पुंज जिसके द्वारा शिव ने अन्य देवताओं पर अपनी श्रेष्ठता का प्राकट्य किया था, पृथ्वी के गर्भ से उपजा व स्वर्ग की ओर दीप्यमान था | घाटों और यहाँ तक कि गंगा से भी पवित्र माना जाने वाला शिवलिंग मंदिर में स्थापित है तथा वाराणसी की आद्यात्मिक आस्था का केंद्र है |

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बी॰एच॰यू॰)  जो भारत का सबसे बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है, की स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1917 में की थी | प्रवेश करते ही संस्थापक की विशाल मूर्ति स्थापित है तथा इसके केंद्र में विश्वनाथ मंदिर स्थित है | बिरलाओं के संरक्षण में विशाल मंदिर का निर्माण 1966 ईस्वी में किया गया था |  इसका धवल शिखर 67.7 मीटर ऊंचा है तथा अति सुंदर नक्काशी तीर्थयात्रियों को अपनी ओर खींचती है |

भारत कला भवन (कला संगहालय)

बी॰ एच॰ यू॰ के शांत परिवेश में 1920 में स्थापित हुआ भारत कला भवन स्थित है जिसमें तैलचित्रों, हिन्दू व बौद्ध मूर्तियों व अन्य पुरातत्वीय अध्ययन की सामग्रियाँ संकलित हैं |

रिवर फ्रंट (घाट)

4 किमी लंबी घाटों की नयनाभिराम क़तार देखने लायक़ है, सुबह सुबह की पहली किरण के समय इस नज़ारे को देखना बहुत सुखद होता है जब नदी और उसके घाटों की मानो समय को रोक देने वाली पुकार आ रही हो | यहाँ के जीवन मेंसुबह से शाम तक पर्यटकों की न टूटने वाली क़तारें – जिनके द्वारा हज़ारों शुभ दिवसों पर गंगा के अनुष्ठान किए जाते हैं |दशाश्वमेध घाट से सभी घाटों पर जाया जा सकता है जहां किराए पर नावें उपलब्ध रहती हैं |

मंदिर

देवी दुर्गा शक्ति व ऊर्जा की देवी मानी जाती हैं | इस मंदिर का निर्माण 18वीं शताब्दी में हुआ तथा यह लाल पत्थर से निर्मित नागर शैली का एक अनुपम उदाहरण है |यह मंदिर रेलवे स्टेशन से बी॰एच॰यू॰ जाने वाली मुख्य सड़क पर तुलसी मानस मंदिर व संकटमोचन मंदिर के ठीक पहले स्थित है |

तुलसी मानस मंदिर – दुर्गाकुंड

यह आधुनिक मंदिर भगवान राम को समर्पित हैं | यह उसी स्थान पर स्थित है जहां मध्यकाल के महान कवि तुलसीदास निवास करते थे और जहां उन्होंने महाकाव्य “श्री राम चरित मानस” की रचना की थी | इस महाकाव्य में रामायण के नायक भगवान श्रीराम का जीवन वृतांत है | तुलसीदास के इस महाकाव्य की चौपाइयाँ दीवारों पर खुदी हुई हैं |हनुमान जी का संकटमोचन मंदिर, जो संकटमोचक के नाम से जाने जाते हैं, तुलसी मानस मंदिर से मात्र 300 मीटर की दूरी पर स्थित है | यह एक प्राचीन मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा किया गया था |

नया विश्वनाथ मंदिर

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित इस आधुनिक पूजा स्थल की योजना पंडित मदन मोहन मालवीय ने तैयार की थी व बिरलाओं ने इसका निर्माण करवाया था | यह सभी धर्म जातियों के लिए निरपेक्ष रूप से खुला है |

महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ

काशी विद्यापीठ को 1920 में बाबू शिव प्रसाद गुप्ता द्वारा अंग्रेजों  द्वारा प्रदान की जा रही शिक्षा के विकल्प के रूप में स्थापित किया गया था | शीघ्र ही यह हिन्दी माध्यम से शिक्षा प्रदान करने वाला राष्ट्रीय केंद्र बन गया | आचार्य नरेन्द्र्देव, बाबू सम्पूर्णानन्द, बाबू श्रीप्रकाश तथा उस समय के अन्य बहुत से दिग्गज इस संस्थान से जुड़े थे |

भारत माता मंदिर

इस मंदिर का उदघाटन महात्मा गांधी द्वारा 1936 में किया गया था तथा इसमें संगमरमर द्वारा निर्मित भारत का उत्तम मानचित्र बना हुआ है | यह मंदिर राष्ट्रवादी बाबू शिव प्रसाद गुप्ता (भारत रत्न) तथा अग्रणी संख्यावाचक व पुरातनपंथी श्री दुर्गा प्रसाद खत्री  द्वारा उपहार में दिया गया था | यह काशी विद्यापीठ के परिसर में ही स्थित है |

अशोक स्तम्भ

यह सारनाथ में  है जो वाराणसी से मात्र 10 किमी की दूरी पर स्थित है | सारनाथ लोकप्रिय बौद्ध तीर्थ केंद्र है जहां भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश दिया था |अशोक स्तम्भ सारनाथ के मुख्य स्तूप के सामने स्थित है जहां सम्राट अशोक ने ध्यान योग किया था | अशोक मार्ग स्थित सारनाथ पुरातत्वीय संग्रहालय में अशोक के सिंह स्तम्भ की एक प्रतिकृति व कुछ अन्य मूर्तियाँ भी हैं  |

राम नगर क़िला

गंगा नदी के पार स्थित काशी नरेश के निवास स्थान (पूर्व महाराजा बनारस) रामनगर के क़िले में एक संग्रहालय स्थित है जिसमें उस समय की पालकी, राजसी वस्त्र, तलवारें, कृपाणें आदि संग्रहीत हैं | राम नगर का दशहरा उत्सव देखने योग्य होता है |रामनगर का क़िला वाराणसी से 14 किमी दूर स्थित है जिसमें राजसी वस्तुओं यथा पुरानी गाडियाँ, शाही पालकियां,तलवारों व पुरानी बंदूकों का एक शस्त्रागार, हाथी दांत का काम व पुरानी घड़ियाँ शामिल हैं |

दुर्गा मंदिर व छिन्नमस्तिका मंदिर भी रामनगर में स्थित हैं | रामनगर का क़िला, जिसका निर्माण 1750 ईस्वी में महाराजा बनारस द्वारा करवाया गया था, गंगा नदी के दाहिने किनारे पर स्थित है | लाल पत्थरों से निर्मित यह क़िला नगर को शक्ति व स्थायित्व प्रदान करता है | यह बनारस के पूर्व महाराजा का महल भी है |

महल खगोलीय व ज्योतिषीय आश्चर्य का उदाहरण है | महल की विशाल दीवारों के भीतर एक बहुत बड़ी घड़ी है | वर्ष, माह, सप्ताह व दिवस दिखाने के अतिरिक्त यह घड़ी दर्शकों को सूर्य, चंद्र व तारों की खगोलीय स्थिति भी दिखाती है |  यह अजूबी घड़ी अथवा धर्म घड़ी बनारस के राजज्योतिषी द्वारा 1852 ईस्वी में बनाई गई थी | इस महल में एक मंदिर है जो महर्षि वेद व्यास को समर्पित है तथा एक संग्रहालय है जो बनारस के महाराजा विभूति नारायण सिंह द्वारा स्थापित किया गया था | इस संग्रहालय में ज़री वस्त्रों का संग्रह, पालकियाँ, हथियार तथा हाथी दांत से निर्मित महंगे आसनों का संग्रह है | यह महल राजसी अंदाज़ में सजाया गया है तथा दशहरा उत्सव के दौरान जीवन के विविध रंग प्रकट करता है |विजयदशमी के दिन इस उत्सव का अंत होता है, जब राक्षस राज  रावण व उसके भाइयों के विशाल पुतले बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में जलाए जाते हैं |

आलमगीर मस्जिद

हिन्दू-मुस्लिम के धार्मिक संवेदनों के एकीकरण का प्रतीक, यह मस्जिद “बेनी माधव का दरेरा” भी कही जाती है | यह विस्मयकारी है कि इस पूरी मस्जिद का निचला भाग एक मंदिर के तौर पर संरक्षित किया गया है |

केन्द्रीय उच्च तिब्बती शिक्षा संस्थान

1971 में दलाई लामा द्वारा स्थापित तिब्बती भाषा का प्रशिक्षण देने वाला विश्व में यह अपनी तरह का एकमात्र संस्थान है | वर्तमान में यह सारनाथ में स्थित है | इस संस्थान में बुद्ध वचनों, तिब्बती पांडुलिपियों तथा अन्य पत्रिकाओं का दुर्लभ संग्रह है |

जंतर मंतर

जंतर मंतर एक वेधशाला है जिसका निर्माण जयपुर के महाराजा जय सिंह द्वारा 1737 ईस्वी में करवाया गया था | महाराजा जय सिंह विज्ञान व तकनीक के बहुत बड़े पक्षधर थे व विशेषकर खगोल में उनकी निजी रूचि थी | इसके निर्माण से पूर्व उन्होंने अध्येताओं को दूसरे देशों की वेधशालाओं का अध्ययन करने हेतु विदेश भेजा | उनके भेजे हुए दूत खगोल पर बहुत सी नियमावलियाँ ले कर लौटे | वाराणसी का जंतर मंतर दिल्ली, मथुरा, उज्जैन व जयपुर की वेधशालाओं के सदृश निर्मित किया गया |

जंतर मंतर का निर्माण स्थानीय समय मापन, सूर्य का झुकाव, ऊंचाई, तारों का झुकाव,ग्रहों की स्थिति तथा ग्रहणों का समय निश्चित करने के उद्देश्य से हुआ था | वाराणसी के जंतर मंतर में चलन, गति, तथा तारों व ग्रहों की प्रकृति का पता लगाने वाले व सटीक खगोलीय अध्ययन वाले राजगीरी द्वारा निर्मित अनेकों यंत्र हैं जो आज भी प्रभावी तौर पर प्रयोग किए जाते हैं | जंतर मंतर में बहुत सारी विशिष्ट संरचनाएँ हैं जिसमें से प्रत्येक खगोलीय मापन के विशेष कार्य से संबन्धित है |

इन संरचनाओं के अचंभित करने वाले ज्यामितीय संयोजनों ने बहुत से वास्तुकारों, कलाकारों तथा इतिहासकारों का ध्यानाकर्षण किया है | मूलत: वहाँ बहुत से यंत्र स्थापित थे | उनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण हैं क्रांतिवृत्त यंत्र, दिगांश यंत्र, सम्राट यंत्र, प्रकाश यंत्र, राम यंत्र, दिशा यंत्र तथा ध्रुव यंत्र |

जैन मंदिर

प्रसिद्ध जैन संत श्वेतांबर का मंदिर यहीं पर स्थित है यह भेलूपुर गली के ठीक पहले रेलवे स्टेशन से बी॰एच॰यू॰ जाने वाले मार्ग पर स्थित है |

वायु मार्ग द्वारा

सबसे निकटवर्ती हवाई अड्डा बाबतपुर में है जो यहाँ से 22 किमी तथा सारनाथ से 30 किमी दूर है |  दिल्ली, आगरा, खजुराहो, कोलकाता, मुंबई, लखनऊ तथा भुवनेश्वर व काठमाण्डू (नेपाल) से वाराणसी के लिए सीधी उड़ानें उपलब्ध हैं |

रेल मार्ग द्वारा

वाराणसी तथा मुगलसराय महत्त्वपूर्ण रेलवे जंक्शन हैं, जहां से सम्पूर्ण भारत के लिए रेलगाड़ियों का संपर्क है |

सड़क  मार्ग द्वारा

वाराणसी, कोलकाता से दिल्ली राष्ट्रीय उच्च मार्ग -2 द्वारा, कन्याकुमारी से राष्ट्रीय उच्च मार्ग -7 द्वारा तथा गोरखपुर से राष्ट्रीय उच्च मार्ग – 29 द्वारा तथा देश के अन्य नगरों से उच्च कोटि के वाहन पथों द्वारा जुड़ा हुआ है |कुछ महत्वपूर्ण स्थानों की दूरी इस प्रकार है :- आगरा -565 किमी, प्रयागराज-128 किमी, भोपाल-791 किमी, बोधगया-240 किमी, कानपुर-330 किमी, खजुराहो-405 किमी, लखनऊ-286 किमी, पटना-246 किमी तथा सारनाथ-10 किमी |

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