पिपरहवा

  • पिपरहवा के विषय में
  • पिपरहवा का इतिहास

पिपरहवा उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जनपद के बिर्दपुर के निकट एक ग्राम है , बिर्दपुर ब्रिटिशकाल में “बिर्दपोर” के नाम से उच्चारित किया जाता था | यहाँ पाया जाने वाला सुगंधित चावल, “काला नमक” अति प्रसिद्ध है |

इस प्राचीन स्थल का मुख्य स्तूप 19वीं शताब्दी से जाना जाता है, जिसे 1898 में डब्ल्यू॰ सी॰ पेपे द्वारा खुदाई से प्राप्त किया गया था |इस खुदाई से बलुआ पत्थर निर्मित एक विशाल बक्सा प्राप्त हुआ था, जिसमें बहुमूल्य अन्य वस्तुएँ थीं, इसमें एक अर्धचंद्राकार मंजूषा भी थी जिसमें एक पुरालेख था,“सुकिति भतीनाम सा-भगिनिकानाम सा-पुतादलनाम, इयाम सलिला निधाने बुद्धास भगवते सकीयनाम”| इस पुरालेख के आधार पर यह मत स्थापित किया गया कि पिपरहवा स्तूप में जो अस्थियाँ प्राप्त हुई हैं वह भगवान बुद्ध का ही अवशेष है |

1971 के बाद पिपरहवा में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के श्री के॰ एम॰ श्रीवास्तव के नेतृत्व में और खुदाइयां हुईं, जिनमें उत्कीर्ण खुदाई वाली मिट्टी की मुद्राएँ प्राप्त हुईं तथा एक मिट्टी का ढक्कन भी मिला है जो प्रथम व द्वितीय शताब्दी का माना जा रहा है | आलेखों का अर्थ इस प्रकार है, “ॐ देवपुत्र विहरे कपिलवस्तु भिक्षु संघास” तथा “महा कपिला वस्तु भिक्षु संघास” जो कपिलवस्तु में बौद्ध मठ स्थित होने की पुष्टि करता है |

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