सिकंदरा अकबर का मकबरा है, अकबर ने स्वयं इस इस सुंदर इमारत का निर्माण प्रारम्भ करवाया था | इस इमारत की संरचना में हिन्दू, ईसाई, इस्लामिक, बौद्ध, जैन धर्मों की छाप स्पष्ट दिखाई पड़ती है | सन 1488 से 1517 तक दिल्ली के शासक रहे सिकंदर लोधी के नाम पर सिकंदरा का नाम पड़ा |
सिकंदरा किला फ़तेहपुर सीकरी के पश्चिमी भाग में स्थित है जो नगर के मुख्य भाग से मात्र 10 किमी की दूरी पर स्थित है | सिकंदरा मुग़ल बादशाह अकबर की अंतिम विश्राम स्थली है | अकबर मुग़ल बादशाहों में महानतम था तथा अपने काल में सर्वाधिक धर्म निरपेक्ष सोच का था | वह प्राच्य परिष्करण की लंबी परंपरा का उत्तराधिकारी था, कला, साहित्य, दर्शन व विज्ञान का महान संरक्षक था | अकबर के क़िले का एक भ्रमण किसी व्यक्ति को अकबर के पूरे व्यक्तित्व से उसी तरह परिचित कराता है जैसे ताज महल देखने पर मुमताज़ महल का | अकबर ने अपना मकबरा बनवाने का स्वयं निश्चय किया व उसके लिए उचित स्थान का चयन किया | तारतारी परंपरा में जीवित व्यक्ति द्वारा स्वयं अपना मकबरा बनवाने का चलन था, जिसका मुग़लों ने धार्मिक रूप से पालन किया | अकबर के पुत्र जहांगीर ने 1613 ईस्वी में इस पिरामिडीय मकबरे का निर्माण कार्य पूरा किया |
हालांकि आजकल यहाँ लालपत्थर से बने चार प्रवेश द्वारों, जो मकबरे में प्रवेश हेतु बने हैं, में से एक का ही प्रयोग होता है | प्रवेश द्वारों पर मोटी सजावट की गई है, जिसमें मोज़ैक के बड़े सुंदर बूटे उकेरे गए हैं | प्रवेश द्वारों पर किनारे की ओर बनी मीनारें विशेष रूप से आकर्षित करती हैं | लाल बलुआ पत्थर से निर्मित, मीनारें सफ़ेद संगमरमर पत्थर से बहुकोणीय पद्धति से बनी हैं, सुंदर अनुपात व विपुल अलंकरण प्रवेशद्वारों को बहुत ही प्रभावशाली बनाते हैं | ये प्रवेशद्वार हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई वास्तुकला तथा अकबर की विशिष्ट निर्माण शैली की झलक देते हैं | ईंटों से निर्मित एक चौड़ा रास्ता मकबरे की ओर जाता है | इसमें पाँच मंज़िलें हैं और यह और यह एक खंडित पिरामिड की शक्ल का दिखता है | मुख्य मकबरा एक विशिष्ट चौकोर डिजाइन में बना है तथा यह अन्य मुग़ल कालीन इमारतों से बिलकुल अलग है | ज्यामितीय आकृतियाँ रंगीन पत्थरों से बनी चमकदार टाइलों से उकेरी गई हैं , जो मकबरे को असरदार बनाती हैं |
मोज़ैक का कार्य सामान्यता उभरी शैली में किया गया है, रंगीन पत्थरों के वर्गाकार या आयताकार टुकड़ों को एक विशिष्ट पद्धति में जमाया गया है | बाद में बादशाह जहाँगीर ने इसमें सफ़ेद संगमरमर की दोहरी लटकी छत में बहुमूल्य पत्थर जड़वाए | अकबर की पुत्रियाँ शक्र-उल-निशां बेगम व आराम बानो की कब्रें भी इसी मकबरे में हैं |
इसकी कुछ आकृतियाँ बाद में आगरा में निर्मित ताज महल से बिलकुल मिलती जुलती हैं | इस स्थान की सर्वाधिक शानदार और आकर्षित करने वाली विशेषता इसका भव्य द्वार व चार मीनारें हैं जिन पर बहुत जटिलता से नक्काशी की गई है | लाल बलुआ पत्थर पर जड़ाऊ सफ़ेद संगमरमर का काम भी आश्चर्यचकित कर देने वाला है | तहखाने में बनी कब्र के सामने निर्मित बरामदा एक अन्य यादगार निर्माण है | यह सुंदर और महीन सिल्मिट से बनी चित्रकारी से भरा है |
बाहरी बगीचा चार बाग की तर्ज़ पर बनाया गया है जो कि यहाँ का एक अन्य आकर्षण है | मरियम, जहांगीर की माँ, का मकबरा भी इस लाल पत्थर की भव्य इमारत के निकट ही निर्मित है |
प्रवेश शुल्क
भारत के नागरिकों व सार्क देशों ( बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव व पाकिस्तान) तथा बिम्स्टेक देश (बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलैण्ड व म्यांमार) के पर्यटकों के लिए रू॰ 5/- प्रति व्यक्ति तथा रू॰ + 10/- टोल टैक्स (आगरा विकास प्राधिकरण) अर्थात = रू॰ 15/- प्रति व्यक्ति
अन्य : 2 अमेरिकी डॉलर अथवा समकक्ष भारतीय रुपए प्रति व्यक्ति (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) + रू.10/- टोल टैक्स (आगरा विकास प्राधिकरण) (शुक्रवार को आगरा विकास प्राधिकरण द्वारा निशुल्क प्रवेश)
रू॰ 500/- मूल्य का आ॰वि॰प्रा॰ का टिकट आगरा का क़िला, इत्तिमाद-उद-दौला, अकबर का मकबरा, फ़तेहपुर सीकरी के भ्रमण हेतु मान्य है |
(15 वर्ष तक के बच्चों हेतु प्रवेश नि:शुल्क है)
समय
सूर्योदय से सूर्यास्त तक खुला रहता है |