अभिलेखों के अनुसार, राज्य 1834 तक बंगाल सूबे के अधीन था। उस समय तीन सूबे थें बंगाल, बंबई व मद्रास तथा एक चौथे सूबे के गठन की आवश्यकता अनुभव की गई जिसकी परिणिति आगरा सूबे के गठन के रूप में हुई एवं जिसका प्रमुख गवर्नर होता था।
जनवरी, 1858 में लार्ड कैनिंग इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) में आ बसे तथा उत्तरी पश्चिमी सूबे का गठन किया। इस प्रकार शासन शक्ति आगरा से इलाहाबाद स्थानांतरित हो गई। इसी क्रम में, वर्ष 1868 में उच्च न्यायालाय भी आगरा से इलाहाबाद स्थानांतरित हो गया।
1856 में अवध को मुख्य आयुक्त के अधीन किया गया। बाद में जनपदों का उत्तरी पश्चिमी सूबे में विलय किया जाना प्रारम्भ हुआ तथा इसे 1877 में ‘उत्तरी पश्चिमी सूबा तथा अवध’ के नाम से जाना गया। पूरे सूबे को 1902 में ‘यूनाइटेड प्रोविन्स ऑफ आगरा एंड अवध’ का नाम दिया गया।
1920 में विधान परिषद के प्रथम चुनाव के बाद लखनऊ में 1921 में परिषद का गठन हुआ। क्योंकि गवर्नर, मंत्रियों तथा गवर्नर के सचिवों को लखनऊ में ही रहना था अत: तत्कालीन गवर्नर, सर हरकोर्ट बटलर ने अपना मुख्यालय इलाहाबाद से लखनऊ स्थानांतरित कर दिया। 1935 तक सम्पूर्ण कार्यालय लखनऊ आ चुका था।
अब, लखनऊ सूबे की राजधानी बन चुका था, जिसका नाम अप्रैल 1937 में ‘यूनाइटेड प्रोविन्सेज़’ रखा गया तथा जनवरी, 1950 में भारत के संविधान के अधीन इसका नाम ‘उत्तर प्रदेश’ किया गया।