संगीत मरे हुए शरीर में जान फूँक सकता है तथा पूरे विश्व का मनोरंजन करता है, लयबद्ध गीत व ताल, जो कि पुरातन काल से प्रशंसित है जिसे यहाँ हर जगह अनुभव किया जा सकता है | उत्तर प्रदेश जिसे कथक नृत्य की उत्पत्ति का श्रेय दिया जाता है, विश्व प्रसिद्ध सौ से अधिक नर्तकों व संगीतकारों का गृह प्रदेश है | इन कलाकारों के संगीत के जादू ने लाखों पर्यटकों को आकर्षित किया है जो उन्हें सुनने हेतु आए व जीवन भर के लिए अनुभव प्राप्त किया | पश्चिमी देश सर्वाधिक प्रभावित है जहां से लोग बड़ी संख्या में संगीत सीखने यहाँ आए जिससे वे इस क्षेत्र में अपना भविष्य बना सकें |यहाँ हर अवसर हेतु गीत हैं जिन्हें मधुर संगीत व नृत्य से सजाया गया है, जो किसी व्यक्ति को रंगीन स्वप्निल संसार में जीवन के हर क्षण विचरण कराने हेतु पर्याप्त हैं |
कथक नृत्य – लयबद्ध ताल के साथ समायोजन
उत्तर भारत के गर्व- कथक का जन्म उत्तर प्रदेश में हुआ और यह शास्त्रीय नृत्य के आठ प्रारूपों में से एक, महत्त्वपूर्ण नृत्य शैली है | नृत्य का यह प्रारूप रामायण व महाभारत महाकाव्य की कथाओं को लयबद्ध कदमों की ताल पर, दर्शनीय घुमावों व भंगिमाओं का घुंघरुओं की ताल पर नाटकीय प्रस्तुतीकरण है | कथक नृत्य ने सम्पूर्ण विश्व में ख्याति अर्जित की है |
कथक नृत्य का सजीव प्रदर्शन देखना ऐसा चमत्कृत करने वाला प्रदर्शन है मानों आपने सहारा मरूस्थल में हिमनद पा लिया हो | कलाकार व उनका श्रृंगार, उनका बनाव तथा हरकतें, तीव्र गति से घूमना तथा पैरों की चाल, इन विशेषताओं के साथ साथ पार्श्व संगीत के साथ पूरी लयबद्धता एक स्वर्गिक वातावरण पैदा करती हैं, जहां एक व्यक्ति अपने आप को सांसारिक बंधनों से मुक्त अनुभव करता है |बहुत से विदेशियों ने कथक कला को सीखा व इसमें महारत हासिल की है, फ्रांस की ईसाबेला अन्ना ने इस कला को पाँच वर्ष तक पंडित जय किशन महाराज के मार्गदर्शन में सीखा | इच्छुक व्यक्ति इसे रवि शंकर मिश्रा तथा पंडित बिरजू महाराज जैसे दिग्गजों से सीख सकता है | कथक अकादमी, लखनऊ में इस कला का प्रशिक्षण प्राप्त किया जा सकता है |
नृत्य के अन्य आकर्षण
अन्य महत्त्वपूर्ण नृत्य जिन्होने पर्यटकों का ध्यानाकर्षण किया है – हुड़का बौल नामक प्रसिद्ध नृत्य जिसे धान व मक्का की खेती के दौरान प्रदर्शित किया जाता है | एक निश्चित दिन, प्रारम्भिक रिवाजों के पूर्ण कर लिए जाने के बाद, विभिन्न खेतों में बारी बारी से नृत्य किया जाता है |रास नृत्य श्री कृष्ण के प्रारम्भिक जीवन की कहानी कहता है तथा ये जन्माष्टमी के अवसर पर आयोजित किया जाता है | अपनी उत्साही हरकतों से इस नृत्य के दौरान लोगों का अपने देवताओं पर विश्वास दिखाई देता है और निश्चित ही आप ऐसी सभाओं में इसे अनुभव कर सकेंगे |
संगीत जो वर्षा करवा दे
उत्तर प्रदेश में सांगीतिक नवाचार का इतिहास गुप्त काल व हर्षवर्धन काल से जुड़ा है, तब यह संगीत में नई खोजों का प्रमुख केंद्र था | मुगलों ने सांगीतिक वाद्यों के विकास में नई राह दिखाई और ये माना जाता है कि इस काल में संगीत फला फूला | सम्राट अकबर के दरबार के दो संगीतकारों, तानसेन व बैजू बावरा को संगीत के क्षेत्र में प्रमुख योगदाता माना जाता है |ऐसा विश्वास किया जाता है कि तानसेन ने अपनी जादुई आलाप से संगमरमर पत्थर को पिघला कर इतिहास रच दिया था |
अवध के नवाबों तथा बाद में विभिन्न घरानों के उस्तादों ने संगीत के फलने फूलने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई | उस समय इसे लोकवार्ता के रूप में प्रस्तुत किया गया था |उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध लोक संगीत विधा है “रसिया” जो राधा व भगवान कृष्ण के अलौकिक प्रेम को प्रदर्शित करती है |
सांस्कृतिक निष्पादनों में विरासत का प्रदर्शन
उत्तर प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा आयोजित विभिन्न नृत्य व संगीत कार्यक्रमों में भारत की सांस्कृतिक विरासत का अनुभव करने का सर्वोत्तम अवसर होता है | “लखनऊ महोत्सव” लखनऊ में नवंबर के चौथे व दिसंबर के पहले सप्ताह में आयोजित किया जाता है, “शारदोत्सव” दिसंबर मास में आगरा तथा “ताज महोत्सव” भी आगरा में ही फ़रवरी मास में आयोजित किया जाता है, ये ऐसे महोत्सव हैं जिनमें प्राप्त अवसरों को कोई भी चूकना नहीं चाहेगा | अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों के अतिरिक्त इन महोत्सवों में भारत के मशहूर नर्तकों व संगीतकारों के कार्यक्रम एक विशिष्ट आकर्षण होते हैं |
धुन व ताल के साथ नृत्य
उत्तर प्रदेश में लोक नृत्य परम्पराओं की एक समृद्ध विरासत है |यहाँ हर अवसर, चाहे वह जन सामान्य का आनंद अथवा दु:ख व्यक्त करने हेतु हो, के लिए विशिष्ट लोक गीतों व नृत्यों की उपलब्धता है | किसी भी अवसर को आनंदमय बनाने हेतु, महिलाएं रंगीन परिधानों से सुसज्जित होकर पुरुषों के साथ गीत गाने व नृत्य करने हेतु तैयार रहती हैं |प्रदेश के नृत्य प्रारूप बहुत प्रसिद्ध हैं तथा इन्होने बहुत से विदेशियों को भी सहभागिता हेतु आमंत्रित किया है |रासलीला, रामलीला, खयाल, नौटंकी, तथा नक़ल बहुत प्रसिद्ध हैं जिनमें दर्शकों के मनोरंजन हेतु नृत्य के माध्यम से महाकाव्यों की कथाएँ भी वर्णित की जाती हैं |