उत्तर प्रदेश में मेले और त्यौहार हमेशा संजोये गए हैं । उत्तर प्रदेश, भारत में धर्मों, संस्कृति, पंथ और जाति के संगम का एक उदाहरण है, अपने मेलों और त्योहारों के माध्यम से यह इसकी परंपराओं का प्रतिनिधित्व करता है। कलाकार पेशेवर तरीके से अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हुए दर्शकों को भाग लेने के लिए आमंत्रित करते हैं|
सपेरों, ज्योतिषों , बाजीगरों और जादूगरों के करतब इन त्योहारों के आम दृश्य हैंऔर सड़क के किनारे के ढाबों (होटलों) में तैयार किए जा रहे व्यंजनों की खुशबू सबसे लुभावनी होती है ।इन त्योहारों पर दूर-दूर से आए शिल्पकार अपनी कला और शिल्प का प्रदर्शन करते हैं जो एक आनंदपूर्ण अनुभव होता है| निश्चित रूप से, कोई भी यूपी के त्योहारी सीजन के सरल लेकिन अद्भुत आकर्षण से दूर नहीं जा सकता है।उत्तर प्रदेश में त्योहारों और मेलों में देश भर के कारीगरों द्वारा भाग लिया जाता है जहां वे व्यापार करते हैं, अपनी संस्कृति और परंपराओं से संबंधित उत्पादों और इसलिए आगंतुकों को एक छत के नीचे अन्य संस्कृतियों का अनुभव करने का मौका देते हैं।वर्षों से, आगरा में फरवरी माह में आयोजित ताज महोत्सव दुनिया भर के हजारों पर्यटकों को आकर्षित करने वाले कई मेलों में से एक साबित हुआ है।ताजमहल की गर्मजोशी से सजी चांदनी के तहत प्रदर्शन कर रहे प्रसिद्ध संगीतकारों और नर्तकियों को देखना मेले द्वारा पेश किया गया सबसे अच्छा अवसर है।
बटेश्वर मेला
बटेश्वर मेला, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक केंद्र बटेश्वर में अक्टूबर और नवंबर के महीने में आयोजित किया जाता है और यह आगरा से 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह भगवान शिव की पूजा करके और यमुना नदी में एक पवित्र डुबकी लगाकर अपनी आत्मा को शुद्ध करने का स्थान है। पशुधन व्यापार में भाग लेना यहां एक रोमांचकारी अनुभव है।
कैलाश मेला
कैलाश मेला आगरा से 12 किमी दूर कैलाश नामक स्थान पर आयोजित किया जाने वाला एक अन्य धार्मिक मेला है | यह अगस्त और सितम्बर महीने में आयोजित किया जाता है | यह भगवान शिव के सम्मान में आयोजित किया जाने वाला मेला है | विश्वास किया जाता है कि उन्होने इस स्थान पर पाषाण लिंग के रूप में दर्शन दिया था |
गंगा उत्सव, वाराणसी
गंगा उत्सव, वाराणसी में गंगा नदी के पूजन हेतु नदी के किनारों पर मनाया जाता है | यह उत्सव अक्तूबर -नवंबर मास में आयोजित किया जाता है |लखनऊ महोत्सव, जो कि 10 दिनों तक नवम्बर-दिसंबर मास में आयोजित होता है, नवाबी शान व उन के खानपान, क़व्वाली, ठुमरी तथा अन्य कार्यक्रमों यथा पतंगबाज़ी, तांगा दौड़ तथा कबूतरबाज़ी को प्रदर्शित कर सटीक उत्सवी वातावरण प्रस्तुत करता है | यह उत्तर प्रदेश में आपके भ्रमण कार्यक्रम को बदलने व अन्य मेलों को खोजने का सही समय है |
कुम्भ मेला
हिंदुत्त्व में कुम्भ अति पवित्र तीर्थयात्राओं में से एक है | कुम्भ शब्द संस्कृत के “कुम्भ” अर्थात “घड़े” अथवा “कलश” से लिया गया है तथा “मेला” का अर्थ “उत्सव” से है इस कारण यह “कलश उत्सव” के नाम से जाना जाता है | कुम्भ मेले का इतिहास भी उतना ही पुराना है जितनी स्वयं सभ्यता, ऐसा विश्वास किया जाता है कि देवों व दानवों में अमृत कलश को लेकर युद्ध हुआ, यह युद्ध बारह दिनों व बारह रातों तक चला, इस दौरान अमृत की चार बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक व उज्जैन में गिरीं | कुम्भ मेला इन्हीं चारों स्थानों पर बारह वर्षों में चार बार मनाया जाता है | प्रत्येक बारह वर्षों के चक्र में एक महा मेला, जिसे महा कुम्भ मेला कहा जाता है, प्रयागराज में आयोजित होता है | नाशिक में, फाल्गुन तथा चैत्र मास में (फ़रवरी, मार्च तथा अप्रैल), उज्जैन में वैशाख मास में (मई), तथा हरिद्वार में श्रावण मास (जुलाई) में कुम्भ मेला आयोजित किया जाता है | देश के विभिन्न भागों व विदेश से आने वाले श्रद्धालुओं ने इसे विश्व का विशालतम मानव समागम बना दिया है | उच्चतम धर्मगुरुओं व ज्योतिषविदों का दल सूर्य, चंद्र व बृहस्पति की ग्रहीय दशाओं को देखने के बाद महाकुंभ की यथोचित तिथियों का निर्धारण करता है |