उत्तर प्रदेश का मौसम सामान्यता ऊष्ण कटिबंधीय मानसून के तौर पर परिभाषित किया जाता है |
उत्तर प्रदेश में तीन सर्वाधिक प्रबल मौसम अनुभव किए जाते हैं :
- शीत काल – नवंबर से फ़रवरी
- ग्रीष्मकाल – मार्च, अप्रैल तथा मई
- दक्षिणी-पश्चिमी मानसून – जून, जुलाई, अगस्त, सितम्बर तथा अक्तूबर
कमज़ोर पड़ते हुए मानसून, यद्यपि विद्यमान है, का उत्तर प्रदेश में नगण्य सा प्रभाव रहता है तथा शीतकाल में बहुत ही हल्की सी फुहारों से प्रदेश को नहलाता है | इनमें से कुछ फुहारें तो मानसून नहीं बल्कि पश्चिमी व्यवधानों के कारण होती हैं |
उत्तर प्रदेश में अनुभव किए जाने वाले तीन विशिष्ट मौसमों प्रारम्भिक तापमान, तथा वर्षा को निम्न प्रकार संक्षेप में वर्णित किया जा सकता है :-
- ग्रीष्म (मार्च – जून) : गर्म व शुष्क ( तापमान 45° सेल्सियस तक बढ़ता है, कभी कभी 47-48° सेल्सियस तक भी ) ; निम्न सापेक्षिक आर्द्रता (20%); धूल भरी हवाएँ |
- मानसून ( जून – सितम्बर) : इस काल में औसत वार्षिक 990मिमी का 85% प्राप्त होता है | वर्षा काल में तापमान 40°सेल्सियस– 45° सेल्सियस तक रहता है |
- शीतकाल : (अक्तूबर से फ़रवरी) : शीत) तापमान 3°– 40° सेल्सियस तक गिर जाता है, कभी कभी तो -1°सेल्सियस से भी नीचे), खुला आकाश, कुछ क्षेत्रों में धुंध की स्थितियां भी होती हैं |
उपरोक्त जलवायु विविधता के कारण, उत्तर प्रदेश को दो मौसम संबंधी उप प्रभागों – पूर्वी उत्तर प्रदेश व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विभक्त किया गया है :-
बहुत थोड़े से शुष्क व अर्ध शुष्क भागों सहित पूरे प्रदेश में वर्षा होती है, हिमपात नगण्य है परंतु ओस , पाला तथा ओलावृष्टि प्रदेश में अक्सर होती है | प्रदेश में जो भी वर्षा होती है वह पर्वतीय, चक्रवातीय तथा वाष्पीकरण प्रकार की है |
वर्षा
ग्रीष्म कालीन मुख्य घटनाक्रम के तौर पर, भारतीय मानसून की प्रमुख शाखा बंगाल की खाड़ी, उत्तर प्रदेश में अधिकतम वर्षा का संवाहक है | यह दक्षिणी-पश्चिमी मानसून है जो यहां अधिकतम वर्षा लाता है, हालांकि पश्चिमी व्यवधानों तथा उत्तर-पूर्वी मानसून भी प्रदेश की कुल वर्षा में अपना योगदान देते हैं | उत्तर प्रदेश में वर्षा का स्तर भिन्न भिन्न हो सकता है | पहाड़ी क्षेत्रों में यह वार्षिक औसत 170 सेमी से भिन्न व पश्चिमी क्षेत्रों में 84 सेमी से भिन्न हो सकता है | उपरोक्त वर्षा का अधिकतम भाग मानसून काल के चार महीनों में ही प्राप्त होता है, अधिक वर्षा बाढ़ तथा कम वर्षा सूखे की स्थितियाँ उत्पन्न करती हैं | सूखा तथा बाढ़, इन दोनों घटनाक्रमों की प्रदेश में पुनरावृत्ति सामान्य प्रक्रिया है |
उत्तर प्रदेश में बाढ़
उत्तर प्रदेश में इसकी प्रमुख नदियों गंगा, यमुना, रामगंगा, गोमती, शारदा, घाघरा, राप्ती तथा गंडक के जल-प्लावन के कारण प्रदेश में बाढ़ का आना एक परिचित खतरा है | उत्तर प्रदेश में बाढ़ से होने वाला वार्षिक आंकलित नुकसान रू॰ 4.32 बिलियन ($70 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है | हानि को कम करने के लिए बाढ़ नियंत्रण के बड़े उपाय किए गए हैं | इनमें से अधितम बाढ़ घटनाएँ मानसून सीज़न में तथा नदियों के जल-प्लावन के कारण घटती हैं | वर्ष 2010 को उत्तर प्रदेश में एक ऐसे ही वर्ष के रूप मे जाना जाता है |
उत्तर प्रदेश में सूखे
उत्तर प्रदेश में बहुत ही अस्थिर मानसून व वर्षा की कमी के कारण सूखे की स्थिति उत्पन्न होती है जो बड़े धन – जन की हानि का कारण बनती है | वर्ष 2002 व 2004 के सूखे से हुई हानि का आर्थिक आंकलन रू॰ क्रमश: 75.4 बिलियन (1.2 $ बिलियन अमेरिकी डॉलर) तथा रू. 72.92 बिलियन (1.2 $ बिलियन अमेरिकी डॉलर) किया गया है | पूर्वी उत्तर प्रदेश में वार्षिक वर्षा में वृहद कमी हर 6 – 8 वर्ष के क्रम में अनुभव की जाती है, जबकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह चक्र 10 वर्षों का है |